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Zulm o sitam shayari...

Zulm_o_sitam_shayari


हम भी लिखते तेरे ज़ुल्म-ओ-सितम की दास्ताँ बेवफ़ा,
पर तु ज़माने में रूसवा हो ये हमको हरगिज़ मंज़ूर नहीं...!!

Hum bhi likhate tere har zulm-o-sitam ki daastan bewafa,
Par tu zamaane mein ruswa ho yeh humko hargiz manzoor nahin...!!


  • ज़ुल्म-ओ-सितम - शोषण, अन्याय, अत्याचार, यातना, उत्पीड़न, अनीति
  • दास्ताँ - अफ़साना, कहानी, कथा, घटना, वृत्तान्त, बीती बातें
  • रूसवा - बदनाम, बेईज्ज़त, ज़लील, लांछित, निन्दित, अपमानित, अनादर
  • हरगिज़ - कभी, कदापि, कभी नहीं, किसी कीमत पर नहीं, कत्तई
  • मंज़ूर - स्वीकृत, पसंद, स्वीकार, स्वीकृत, स्वीकार्य, अवलोकित

  • Article By. Dharm_Singh

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