ज़र्रा-ज़र्रा महक उठता है और हरसू बहार छा जाती है,
ख़्वाबों में ही सही सामने जब सूरत-ए-यार आ जाती है !
Zarra-zarra mahak jaata hai aur harsoo bahar chhaa jaati hai,
Khwabon mein hee sahee samne jab soorat-e-yaar aa jaati hai !
- ज़र्रा-ज़र्रा - कण-कण
- हरसू - चारों और
- सूरत-ए-यार - महबूब का चेहरा
- Article By. Dharm_Singh
0 टिप्पणियाँ