शौक़-ए-तमन्ना को ये आरज़ू इन दिनों, राह भी हो और मंज़िल का पता भी हो। दिल की ये हसरत के हो एक ऐसा सफर, क़दम रुके भी ना और थकन का शिकार भी हो। आरज़ू-ए-ख़्वाब में ये ख्वाहिशें पल रही हैं, दूरियाँ भी हों और पासी का असर भी हो। जुस्तुजू है ऐसी, कोई नक़्श-ए-क़दम मिले, रास्ता भी हो और वो रहगुज़र भी हो। फलक से बातें भी हों और खामोशी भी, आवाज़ भी गूंजे और सन्नाटा असर भी हो।
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शौक़-ए-तमन्ना को ये आरज़ू इन दिनों,
जवाब देंहटाएंराह भी हो और मंज़िल का पता भी हो।
दिल की ये हसरत के हो एक ऐसा सफर,
क़दम रुके भी ना और थकन का शिकार भी हो।
आरज़ू-ए-ख़्वाब में ये ख्वाहिशें पल रही हैं,
दूरियाँ भी हों और पासी का असर भी हो।
जुस्तुजू है ऐसी, कोई नक़्श-ए-क़दम मिले,
रास्ता भी हो और वो रहगुज़र भी हो।
फलक से बातें भी हों और खामोशी भी,
आवाज़ भी गूंजे और सन्नाटा असर भी हो।
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