दास्ताँ-ए-दिल मेरी, जाने क्यूँ अधूरी रह गई...,
ज़िन्दगी से लम्बी, मंज़िल से महज़ दो कदम की दूरी रह गई...!
Dastaan-e-dil meri, jaane kyun adhoori rah gai...,
Zindagi se lambi, manzil se mahaz do kadam ki doori rah gai...!
- दास्ताँ-ए-दिल - दिल की कहानी
- मंज़िल - गंतव्य स्थान, ठिकाना, मुक़ाम, पड़ाव
- महज़ - केवल, सिर्फ़, मात्र
- Article By. Dharm_Singh
1 टिप्पणियाँ
उसने जाते हुए मुड़ के देखा नहीं,
जवाब देंहटाएंकोई इतना भी संगदिल तो होता नहीं,
जी सकेंगे न इक पल हम उसके बिना,
जाने वाले ने इतना भी सोचा नहीं...!!