सुनाऊँ तो भला कैसे सुनाऊँ यार, तुम्हें अपनी दास्ताँ-ए-दिल,
होठों से मुस्कान ही नहीं, लफ्ज़ भी छीनकर ले गया इक संगदिल !
Sunaun toh bhala kaise sunaun yaar, tumhen apni dastan-e-dil,
Hothon se muskan hi nahin, lafz bhi chhinkar le gaya ik sangdil !
- दास्ताँ-ए-दिल - दिल की कहानी
- लफ्ज़ - सार्थक शब्द, बात, शब्द
- संगदिल - निर्दयी, बेरहम, ज़ालिम, कठोर ह्रदय
- Article By. Dharm_Singh
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