दे गया वो ज़ख़्म मुझें ऐसा, जिसकी ना फ़िर कोई दवा लगी,,,
नासूर की तरहा बढ़ता गया, जब-जब उसकी यादों की हवा लगी !
De gaya voh zakhm mujhen aisa, jiski naa fir koi dawa lagi,,,
Nasoor ki tarhaa badhta gaya, jab-jab uski yaadon ki hawa lagi !
- ज़ख़्म - घाव, क्षत, चोट, सदमा, मानसिक ठेस या आघात, घाटा, हानि
- नासूर - एक प्रकार का घाव जो निरंतर रिस्ता ओर बहता रहता हो और कभी भी अच्छा नहीं होता
- Article By. Dharm_Singh
0 टिप्पणियाँ