मिट जाते हैं क़दमो के निशां, महज़ कुछ हवा के झोंकों से,
इन्सान टूटता ही नहीं यार, बिख़र जाता है अपनों के धोकों से !
Mit jaate hain qadmo ke nishan, mahaz kuch hawa ke jhonkon se,
Insan tutata hee nahin yaar, bikhar jaata hai apnon ke dhokon se !
- निशां - निशान, चिन्ह, छाप
- महज़ - केवल, सिर्फ़, मात्र
- Article By. Dharm_Singh
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