क्या ख़ूब क़िस्मत के ज़ुल्म-औ-सितम, हम पर बरस रहे हैं,
मुक़म्मल जहाँ को छोड़कर, बस इक शख़्स को तरस रहे हैं !
Kya khoob kismat ke zulm-o-sitam, hum par baras rahe hain,
Mukammal jahan ko chhodkar, bas ik shakhs ko taras rahe hain !
- क़िस्मत - तक़दीर, भाग्य, नसीब, मुकद्दर
- सितम - ज़ुल्म, अत्याचार, अन्याय, अनर्थ, कष्ट पहुँचाना
- शख़्स - व्यक्ति, आदमी, मनुष्य, इन्सान
- Article By. Dharm_Singh
1 टिप्पणियाँ
भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आया हूँ,
जवाब देंहटाएंकभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते।