कौन कमबख़्त कहता है, कि इश्क़ बेमज़ा हो कर इक सज़ा है,
ग़र हो महबूब-ए-वफ़ा और ख़ुदा की रज़ा, तो मज़ा ही मज़ा है !
Kaun kambakht kahta hai, ki ishq bemaza ho kar ik saza hai,
Gar ho mahboob-e-wafa aur khuda ki raza, toh maza hee maza hai !
- बेमज़ा - निस्वाद, बेस्वाद, फ़ीका, नीरस, जिसमें कोई स्वाद न हो
- रज़ा - इच्छा, मरज़ी, आज्ञा, अनुमति, ख़ुशी
- वफ़ा - वचन पालना, निष्ठा, कृतज्ञता, साथ देना, वफ़ादारी, प्रतिज्ञा पालन
- Article By. Dharm_Singh
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